मनोगत

नमस्कार मंडळी.

"लेखणीतली शाई" या ब्लॉगवर आपलं स्वागत. तुम्हाला माझं लेखन कसं वाटलं ते अवश्य कळवा. आपल्या टाळ्यांचे व टीकांचे मनापासून स्वागत.

आपला,
(ब्लॉगलेखक) प्रशांत

Friday, April 10, 2009

मन

मना होता बाधा | सहा विकारांची | ओढ ऐहिकाची | तया लागे ||१||

कामवासनेत | मन मग्न झाले | रसातळा गेले | तत्चारित्र्य ||२||

विनाशाची ओढ | मना लागे सत्य | क्रोधे ज्यास नित्य | व्यापियले ||३||

नश्वराचा लोभ | ग्रासतो मनास | नासते सुख़ास | मोहमाया ||४||

मन अहंकारी | मदात दंगले | मत्सरी रंगले | आत्ममग्न ||५||

चंचळ हे मन | प्रपंचास भाळे | एक त्यां सांभाळे | वक्रतुंड ||६||

मनास लागता | ओढ विकटाची | संपेल जीवाची | तगमग ||७||

मायाजालातूनी | जीव मुक्त व्हावा | म्हणोनी स्मरावा | एकदंत ||८||

Wednesday, April 8, 2009

लोपला स्वयंभू गंधार













तंबोर्‍याची तुटली तार
मैफलीत झाला अंधार
भैरवीविना सभा संपली
निमाला स्वरांचा दरबार
लोपला स्वयंभू गंधार

सुरेल गाणे रंगी रंगले
मंत्रमुग्ध रसिकांना केले
आज अचानक मात्र थांबला
कशास तारांचा झंकार?
लोपला स्वयंभू गंधार

सूर लोपले ताल थांबला
स्थायीतच अंतराही शमला
आलापांचा अन् तानांचा
आज का कुंठला विस्तार?
लोपला स्वयंभू गंधार